लुधियाना। पंजाब विधानसभा के चुनावों की अभी घोषणा नहीं हुई है, मगर चुनाव नजदीक होने की वजह से राजनीतिक दलों ने सरगर्मियां बढ़ा दी है और निरंतर राजनीतिक समीकरणों में बदलाव आ रहा है। अकाली दल के सरंक्षक व मुख्यमंत्री पंजाब प्रकाश सिंह बादल के भतीजे एवं पूर्व वित्त मंत्री पंजाब मनप्रीत बादल द्वारा अकाली दले से अलविदाई लेकर अलग होकर पीपुल्स ऑफ पंजाब पार्टी के गठन उपरांत प्रदेश में राजनीतिक मानचित्र पर कई चित्र दिखाई दे रहे है। मनप्रीत बादल का दो अन्य राजनीतिक दलों के साथ तालमेल करके तीसरे मोर्चे का रूप देकर अकाली दल चिंता में दिखाई देने लगा था, मगर पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं लोकभलाई पार्टी के सुप्रीमों बलवंत सिंह रामूवालिया की पार्टी का अकाली दल में विलय 'सोने पर सुहागा' का काम कर गया है और अकाली कार्यकर्ताओं के मनोबल को ऊपर उठाने में सहायक सिद्ध होगा। अकाली दल द्वारा जनहित घोषणाओं की पिटारी खोलने, विश्व कबड्डी कप प्रतियोगिता का आयोजन करने तथा 'विरासत-ए-खालसा' समारोहों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किये जा रहे है, जबकि दूसरी तरफ आपसी फूट का शिकार कांग्रेस में पार्टी के ही एक पूर्व प्रदेशाध्यक्ष शमशेर सिंह दुल्लो द्वारा पंजाब में दलितों, हिंदुओं तथा अल्पसंख्यकों की जनसंख्या 78 प्रतिशत होने का दावा करते हुए 117 विधानसभाई सीटों में से 90 सीटें इन वर्गों को देने की वकालत करके प्रदेश कांग्रेस में हडकंप मचा दिया है। कांग्रेसी दिग्गज दुल्लो की इस डुगडुगी पर कोई टिप्पणी ना करे, मगर यह तो मानते है कि राज्य की राजनीति पर कुछ धनाढय़ परिवार काबिज है, जिनमें आपसी नजदीकी रिश्ते है और अक्सर वह ऐसी स्थिति उत्पन्न करते रहते है कि पंजाब की अन्य जातियां ऊपर ना उठ सके। रामूवालिया-बादल मिलाप से अकाली दल को जरूर मजबूती मिलेगी, मगर दुल्लो की यह टिप्पणी कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं कही जा सकती। चुनावी युद्ध में बसपा तथा शिरोमणी अकाली दल(अमृतसर) के कूदने की भी चर्चा है, जिस वजह से प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में निरंतर बदलाव देखने को मिल रहा है। (प्रेसवार्ता)
No comments:
Post a Comment