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Saturday 26 November 2011

शरद को चांटा

वीरेंद्र भाटिया

हरविंदर सिंह ने शरद पवार के गाल पर चांटा जड़ दिया। हरविंदर ने एक चांटा मारा लेकिन मीडिया ने पूरा दिन मारे। इसीलिए शायद अन्ना ने पूछा कि 'एक ही मारा?' दरअसल ये चांटा शरद पवार को तो पड़ा ही, मनमोहन सरकार के मूंह पर भी चांटा है। जिस तरीके से महंगाई को लेकर सरकार बेनकाब हुई है और आम जनता को बेहुदा तरीके से दामों में बढ़ौतरी की सजा मिल रही है उसके बदले यदि महंगाई के सबसे बड़े कारण रहे उनके इस बड़े मंत्री को एक चांटा पड़ गया तो उसे सरकार संकेत समझे कि शासन करने की आपकी भी कोई जिम्मेदारी है। इतने बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के झुंड किसलिए इकट्ठे कर रखे हैं यदि एक महंगाई आपसे काबू नहीं होती। हरविंदर सिंह को मीडिया और नेता पागल करार दे रहे हैं लेकिन वह इतना समझदार है कि महंगाई की असली जड़ को पहचान गया। शरद पवार देश में वायदा कारोबार का जनक है। वायदा कारोबार के तहत जरूरी उपयोग की चीजों को  डिलीवरी देने की आड़ में वेयरहाउस में सरकारी तौर पर स्टोर कर दिया जाता है। फिर अपने ही लोगों द्वारा भाव को मैनुपुलेट करके चीजों के दाम बढ़ा दिए जाते हैं। कम भाव पर खरीदी गई चीजों की वायदा कारोबार के वेयर हाउस से डिलीवरी ली जाती है और बाजार में फेंक दी जाती हैं।

इसके अलावा शरद पवार अघोषित रूप से महराष्ट्र के हर बड़े कारोबार में हिस्सेदार है। इस हिस्सेदारी की एवज में वह उन सभी कारोबारियों के हितों के संरक्षण का कार्य करता है जिसमें उसका हिस्सा है। संरक्षण के वक्त शरद पवार आम जनता के हितों के संरक्षण की कीमत पर उन कारोबारियों का संरक्षण करता है और चीनी का निर्यात खुलवा देता है जिससे देश में चीनी कम हो जाती है और जो चीनी 8 से 10 रु किलो आम बिकती थी वह 40 रु किलो बिकने लगती है। ऐसे संरक्षणवादी कार्यों में ही बीता है शरद साहब का अब तक का कार्यकाल। शरद पवार लगातार दोनों सरकारों में कृषि मंत्री हैं। अपने पूरे कार्यकाल में कृषि को लेकर कोई ठोस नीति शरद पवार ने लागू नहीं करवाई। देश की 60 प्रतिशत आबादी को रोजगार देने वाले इतने बड़े क्षेत्र को लेकर शरद पवार सुस्त हैं लेकिन पैट्रोल कंपनियों को घाटा न हो इसलिए पैट्रोल को बाजार के हवाले कर दो, इस फैसले की मंत्री समूह की बैठक में वह शामिल होता है और कुछ नहीं बोलता। कंपनियों को घाटा न हो यह आपके एजेंडा में है क्योंकि आपने इससे अपना राजकोषीय घाटा कम करना है। देश की जी डी पी का जो आधार था कृषि क्षेत्र उसके बारे में क्यों मंत्री समूह की बैठक बुलाने का ख्याल शरद पवार के दिमाग में नहीं आया। खाद के वितरण तक का कोई ढंग का सिस्टम कृषि मंत्रालय के एजेंडे पर नहीं है। लेकिन कृषि मंत्री का प्रोफाइल इसलिए इन महोदय को चाहिए क्योंकि कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण पर जितना मार्जिन है और किसी उत्पाद पर नहीं। वह कंपनियां जो खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण में रत हैं वहां भी शरद पवार का दखल प्रविष्ट हो गया।  देश के हर पैसे वाले जुगाड़ में शरद पवार का इंटरस्ट है। धन बरसाने वाले खेल, क्रिकेट में साहब जी का इंटरस्ट  देखते ही बनता है। बावजूद इसके कि क्रिकेट के पूरे नियम भी शायद ये महोदय जानते नहीं होंगे।
महंगाई क्यों नहीं घट रही इसकी मंत्रणा सरकार करना नहीं चाहती और दकियानूसी तर्क देती है। सरकार अक्सर बोलती रही कि विकास की प्रक्रिया में महंगाई बढ़ती ही है। लेकिन पूरा विश्व मंदी की ओर जा रहा है। भारत की जी डी पी का 10 प्रतिशत का अनुमान आज भी दिवास्वप्न है। 7 प्रतिशत जी डी पी का आंकड़ा इस बरस आ रहा है। आपके आंकड़े ही आपकी बात को झुठला रहे हैं। रिजर्व बैंक अंधेरे में लाठियां चला रहा है। हर बार ब्याज बढ़ाकर पैसा खींच रहा है यानी तरलता कम कर रहा है। इससे कर्ज की लागत बढ़ रही है। कर्ज की लागत बढऩे से बैंक का टर्नओवर कम होगा। कंपनियों की लागत बढ़ेगी और उसका बोझ फिर जनता की ओर। सरकार यह नहीं समझना चाहती की देश की अर्थव्यवस्था में 70 प्रतिशत काला पैसा घूम रहा है जिसे रिजर्व बैंक खीेंच नहीं सकता। उसी काले पैसे से जरूरी चीजों की कालाबाजारी होती है। शरद पवार इस कालाबाजारी का अगुवा हैं। जिस महंगाई की जड़ सरकार को नहीं मिल रही वह जड़ हरविंदर सिंह को पता है। सरकार शरद पवार को घर बैठा देती तो महंगाई नहीं बढ़ती। शरद पवार नैतिक आदमी नहीं हैं। आम जनता का उसने बहुत खून चूसा है और सरकार भी नैतिक नहीं, क्योंकि उसने इस शख्स पर लगाम नहीं लगाई। कामरेड सरकार से क्या गए शरद बाबू आवारा सांड की तरह दनदनाने लगे। ऐसे में कोई आम आदमी गुरु तेगबहादुर जयंती को प्रतीक दिन बना कर शहीद भगत सिंह स्टाईल में उठता है और साहित्यकारों के कार्यक्रम से बाहर निकलते ही महंगाई के प्रतीक के मूंह पर एक चांटा रसीद कर देता है। जो साहित्यकार क्रांति को किताबों में लिखकर बंद कर देते हैं और ऐसे आदमियों से सम्मान और पुरूस्कार लेते हैं उन्हें हरविंदर सिंह जैसा आदमी बता जाता है कि इस आदमी का सही पुरूस्कार क्या है। बहरी सरकार बेशक इसी अंजाम का इंतजार कर रही थी। बेशर्म और उनींदी सरकार की नींद खोलने के लिए इस चांटे का बड़ा महत्व है। मैं हरविंदर सिंह के साथ हूं। और आशंकित भी हूं कि हरविंदर सिंह को शरद गिरोह जिंदा नहीं छोड़ेगा।

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