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सच और झूठ के बीच कोई तीसरी चीज नहीं होती और मैं सच के साथ हूं : छत्रपति       www.poorasach.com      

Monday 21 November 2011

सामाजिक सरोकारों के प्रति जिम्मेदारी बढ़ी : औलख

सिरसा। छत्रपति सम्मान-2011 से सम्मानित होकर जहां मैं अपने आपको गौरान्वित महसूस कर रहा हूं वहीं इस सम्मान के मिलने से सामाजिक सरोकारों के प्रति मेरी जिम्मेदारीऔर अधिक बढ़ गई है। यह सम्मान मुझे समाज के प्रति मेरी जिम्मेदारियों के बारे में भी सचेत करता रहेगा। यह विचार अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नाटककार एवं रंगकर्मी प्रो. अजमेर सिंह औलख ने  छत्रपति सम्मान प्राप्त करने के उपरान्त अपने उद्बोधन में व्यक्त किए। 'संवाद' की ओर से युवक साहित्य सदन में आयोजित सम्मान एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह में छत्रपति की शहादत के प्रति नतमस्तक होते हुए कहा कि वह इस सम्मान से सदैव प्रेरित होते रहेंगे। उन्होंने संवाद संस्था का भी इस सम्मान के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया। प्रो. औलख को यह सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पद्मश्री प्रो. गुरदयाल सिंह ने प्रदान किया। समारोह की शुरूआत तरन्नुम भारती द्वारा एक क्रांतिकारी गीत की प्रस्तुति से हुई। संस्था के वरिष्ठ उपाध्यक्ष परमानन्द शास्त्री ने प्रो. गुरदयाल सिंह, प्रो. अजमेर सिंह औलख के साथ-साथ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मधुसूदन पाटिल व अन्य आमंत्रितजनों का परिचय देते हुए सभी का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रो. अजमेर सिंह औलख को प्रदान किए गए प्रशस्ति पत्र को अंशुल छत्रपति ने पढ़कर सुनाया और अधिवक्ता लेखराज ढोट ने छत्रपति के जीवन वृतांत के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दी।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कुमार साइल के गजल संग्रह 'हवाएं खिलाफ थीं' व डा. हरविन्दर सिंह की समीक्षा पुस्तकें 'प्रगतिवादी काव चिंतन' व 'आधुनिक पंजाबी कविता' का लोकार्पण किया गया। गजल संग्रह व समीक्षा पुस्तकों पर क्रमश: डा. मीत व का. स्वर्ण सिंह विर्क ने शोध-पत्र प्रस्तुत किए। 'हवाएं खिलाफ थीं' पर समीक्षा करते हुए डा. मीत ने कहा कि इस संग्रह की गजलों में इन्सानी अहसास, तुजुर्बे और सोच-फिक्र के रंग झलकते हैं। ल$फ्ज़ों के करघे पर कुमार साइल ने मोहब्बत, सियासत, जोरो-जुल्म, जाति व फलसफाना के ख्यालों के धागों से पेचीदा परन्तु दिलकश तस्वीर बुनी है। 'प्रगतिवादी काव चिंतन' और 'आधुनिक पंजाबी कविता' पर समीक्षा प्रस्तुत करते हुए का. स्वर्ण सिंह विर्क ने कहा कि प्रगतिवादी एवं आधुनिक पंजाबी काव्य क्षेत्र में  इन समीक्षा पुस्तकों ने एक विशेष पहचान अर्जित की है। इन पुस्तकों से प्रबुद्ध पाठकों के साथ-साथ शोधार्थी भी विशेष लाभ उठा पाएंगे।


अपने उद्बोधन में प्रो. गुरदयाल सिंह ने शहीद पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति की शहादत को बेमिसाल करार देते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की। प्रो. अजमेर सिंह औलख के इस सम्मान के लिए चुनाव को उन्होंने यथायोग्य ठहराते हुए कहा कि प्रो. औलख ही उन जैसी बुलंदियों को छूने में सक्षम हैं। उन्होंने तीनों पुस्तकों के सम्बन्ध में भी सारगर्भित टिप्पणियां कीं। साहित्य एवं समाज के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते प्रो. गुरदयाल ने कहा कि सामाजिक सरोकारों के प्रतिबद्ध साहित्य ही अपनी पहचान बनाए रखने में सक्षम रह पाएगा। उन्होंने 'संवाद सिरसा' के इस प्रयास को भी बेहद सराहनीय ठहराते हुए इस कार्यक्रम की निरन्तरता को बनाए रखने का आह्वान किया। अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में डा. मधुसूदन पाटिल ने कहा कि वह इस कार्यक्रम में शिरकत कर अपने आपको अभिभूत महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब धर्म धंधा हो गया है और धंधे का कोई धर्म नहीं होता। आज सियासत भी एक धंधा बन कर रह गई है। उन्होंने तमाम रूढिय़ों, पाखंडों एवं कर्मकांडों के त्याग का आह्वान करते हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने पर विशेष बल दिया। समारोह में प्रो. हरभगवान चावला, सुतंतर भारती, राजीव गोदारा, पूर्ण मुद्गिल, जसमेल कौर, डा. शील कौशिक, राजकुमार निजात, तेजेन्द्र लोहिया, हरीश सेठी, अविनाश कम्बोज, जगरूप सिंह, रामस्वरूप, दयानन्द शर्मा, सुरेन्द्र भाटिया, राजेन्द्र ढाका, चिरंजी लाल, राजेन्द्र प्रसाद, भूपिन्द्र पन्नीवालिया, प्रभुदयाल, डा. रामजी जयमल, वीरेन्द्र सिंह चौहान, डा. जी.डी. चौधरी, प्रो. रूप देवगुण, डा. दर्शन सिंह, मा. सुरेन्द्रपाल सहित अन्य वरिष्ठ व्यक्ति उपस्थित थे। संस्था के सचिव वीरेन्द्र भाटिया ने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए भविष्य में भी इसी प्रकार की सक्रिय सहभागिता की उम्मीद जताई। अंत में संस्था द्वारा सभी आमंत्रित अतिथियों को स्नेह प्रतीक भेंट किए गए।

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