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Thursday, 19 September 2013

अटार्नी जनरल की राय स्वीकार्य नहीं: सरकार

नई दिल्ली। सरकार ने कहा है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अगले सप्ताह होने वाली बैठक में परमाणु यंत्रों की आपूर्ति करने वाली विदेशी कम्पनियों के नागरिक दायित्व वाले कानून का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।
              उल्लेखनीय है कि अमरीका भारत पर उनकी कम्पनियों को नागरिक उत्तरदायित्व से बचने के लिए नियमों में बदलाव का दबाव बनाता रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अगले सप्ताह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से होने वाली मुलाकात में इस मुद्दे का उठा सकता है।
            सरकार पर अमरीका की जीई और वेस्टिंगहाउस रियएक्टर निर्माता कम्पनियों से अनुबंध करने के लिए अमरीका दवाब बना रहा है। इन्ही कम्पनियों के हितों को साधने के लिए अमरीका परमाणु अधिनियम में लचीलापन चाहता है। अगर यह छूट मिलती है तो परमाणु संयंत्र में कोई भी दुर्घटना होने पर रियएक्टर आपूर्तिकर्ता कम्पनियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं हो पाएगी। और आर्थिक व अन्य नुकसान की भरपाई आम जनता के पैसे से की जाएगी। राज्य मंत्री वी नारायणस्वामी का कहना है कि इस बारे में मौजूदा कानून में कोई फेरबदल नहीं किया जाएगा। हालांकि वर्तमान कानून में पहले से ही विदेशी आपूर्तिकर्ता कम्पनियों को उत्तरदायी ठहराने के बारे में ज्यादा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि अटार्नी जनरल जी. वाहनवती के विचार को सरकार ने स्वीकार नहीं किया है, जिसमें उन्होंने परमाणु प्लांट के ऑपरेटर पर अनुबंध में नागरिक दायित्व को शामिल करने या नहीं करने की का निर्णय लेने की छूट दी थी।
             अमरीका की फर्म वेस्टिंगहाउस ने पिछले साल गुजरात से परमाणु संयंत्र के लिए रिएक्टर्स आपूर्ति का समझौता किया। लेकिन अमरीका चाहता है कि उत्तरदायित्व वाले कानून को थोड़ा सा लचीला बनाए जाए। गौरतलब है कि भारत-अमरीका के बीच वर्ष 2008 में परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके बदले में अमरीका ने भारत से 34 साल पुराना बैन हटाया था। बैन के अंतर्गत भारत को परमाणु ईधन और तकनीक नहीं देना शामिल था। बाद में संसद ने 2010 में परमाणु क्षतिपूर्ति अधिनियम में नागरिक उत्तरदायित्व भी जोड़ा। इससे दुर्घटना होने की स्थिति में आर्थिक जिम्मेदारी परमाणु संयंत्र संचालक की तय किए जाने का प्रावधान है। हालांकि इसमें भी परमाणु आपूर्तिकर्ताओं की अधिकांश जिम्मेदारी पर कोई ठोस नियम नहीं बना।

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