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सच और झूठ के बीच कोई तीसरी चीज नहीं होती और मैं सच के साथ हूं : छत्रपति       www.poorasach.com      

Wednesday, 25 September 2013

यह चरित्र तो उचित नहीं माननीय!

             देश की संसद ने आनन-फानन में माननीयों को सजा मिलने के बावजूद गरिमामय सदन में प्रवेश का रास्ता खोल दिया है। इस सरकारी मनमानी ने सजायाफ्ता विधायकों और सांसदों को लेकर जिस तरह से अध्यादेश को मंजूरी दी है उससे साफ हो गया है कि केंद्र की सरकार दागियों को छूट देकर उन्हें सदन में पहुंचने के लिए पूरी तरह से संरक्षण देने को तैयार हो गई है। सरकार के इस फैसले से यूं भी लगता है कि उसने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ विधेयक लाने का काम किया है। विडंबना यह है कि सरकार ने सर्वोच्च अदालत के फैसले से अलग जाने का काम सिर्फ इसलिए किया क्योंकि इससे भला मौजूदा सांसदों और विधायकों को भी होगा। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा का क्या होगा? देश में बदलाव का दौर जारी है। जनता जागरूक हो रही है, उसे पता चल गया है कि अमेरिका जैसे देशों में लागू राइट टू रीकॉल किसको कहते हैं। यह युवाओं का देश है और पढ़े-लिखे शिक्षित युवाओं का देश भी। ऐसे देश में कोई भी सरकार क्या अपने निर्णय थोप सकती है? या कि कोई भी इन्हें आंख मूंदकर मान सकता है? जब जनता नहीं चाहेगी तो कोई कैसे इतने गरिमामयी सदन में पहुंच जाएगा? यह भारी विडंबना है कि जब माननीयों के अपने भले की बात हो तो मेजें थपथपाकर बिना किसी विरोध के प्रस्ताव या विधेयक मान लिए जाते हैं या कि कानून बना दिए जाते हैंं। फिर वह चाहे सांसदों और विधायकों के वेतन-भत्ते बढ़ाने की बात हो या फिर उनके लिए अन्य सुविधाओं की बात हो। इसके लिए तो बाकायदा सदन के सेशन भी बढ़ानेे क्यों न पड़ जाएं। आपका यह चरित्र तो उचित नहीं है माननीय। क्या आप चाहते हैं कि देश का नेतृत्व अच्छे लोगों के हाथों में न जाए। क्या आप यह चाहते हैं कि दागियों की संसद या विधानपालिकाओं के कारण हिंदुस्तान जैसे दुनिया के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक मूल्यों वाले देश का अपमान हो। या कि आप यह चाहते हैं कि देश बागियों और दागियों में घिरा रहे और उसकी उन्नति की राह में बाधाएं बनी रहें। अगर नहीं तो यह अध्यादेश पास ही नहीं होना चाहिए था या कि इसे निरस्त ही कर दिया जाना चाहिए। अन्यथा देश की 120 करोड़ जनता आपको माफ नहीं करेगी।
-राजकमल कटारिया

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