नई दिल्ली। पहले से ही कई घोटाले में घिरी यूपीए सरकार अब एक और स्कैम में
घिरती दिख रही है। इस बार घोटाला लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ा
है। कैग की टेस्ट ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि लौह अयस्क के
ट्रांसपोर्टेशन के लिए बनाई गई दोहरी नीति के दुरूपयोग से सरकार को 17 हजार
करोड़ रूपए के राजस्व का नुकसान हुआ। एक अंग्रेसी दैनिक ने कैग की
रिपोर्ट के हवाले से बताया कि निर्यातक बेधड़क इस पॉलिसी का दुरूपयोग कर
रहे हैं। सीबीआई के नेतृत्व वाली मल्टी डिसिप्लिनरी जांच टीम पहले से इस
तरह के मामलों की जांच कर रही है।
2008 में शुरू हुई घोटाले की शुरूआत
घोटाले की शुरूआत 22 मई 2008 को उस वक्त हुई जब रेलवे ने लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन के लिए दोहरी मूल्य नीति बनाई। इस नीति के तहत घरेलू उपयोग के लिए लौह अयस्कों का ट्रांसपोर्ट करने वाले ट्रांसपोर्टरों को इसका निर्यात करने वालों की अपेक्षा सस्ती दरों पर ट्रांसपोर्ट करने की सुविधा दी गई। निर्यात के लिए लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा घरेलू उपयोग के लिए किए जाने वाले ट्रांसपोर्टेशन की तुलना में औसतन तीन गुना ज्यादा था।
तीन जोन की ऑडिट पर आधारित है रिपोर्ट
कैग ने रेल मंत्रालय को भेजे अपने ड्राफ्ट में कहा कि सरकार को बकाया राशियों से करीब 17 हजार करोड़ रूपए के राजस्व का नुकसान हुआ। यह आंकड़ा 75 लोडिंग प्वाइंट्स में से सिर्फ 26 और 41 अनलोडिंग प्वाइंट्स में से 10 की ऑडिट पर आधारित है। कैग की यह रिपोर्ट उन तीन जोन की ऑडिट पर आधारित है,जहां लौह अयस्क की सबसे ज्यादा लोडिंग होती है। इन जोन में दक्षिण पूर्वी, दक्षिण पश्चिम और पूर्व की सीमा शामिल है। इन जोन में ट्रांसपोर्टेशन मई 2008 से मार्च 2012 के बीच किया गया। कैग को कई ऎसे तथ्य मिले हैं जिससे पता चलता है कि निर्यातकों ने कैसे इस धोखाधड़ी को अंजाम दिया। घरेलू दरों पर ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा के लिए शपथ पत्र और क्षतिपूर्ति नोट जैसे दस्तावेज प्रस्तुत करना जरूरी था। ऑडिर्ट में पाया गया कि 126 पार्टियां ऎसी थी जिन्होंने मई 2008 से 31 मार्च 2012 के बीच लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन के लिए 386 रैक की बुकिंग के पहले इनमें से आवश्यक दस्तावेजों में से एक भी पेश नहीं किया।
घोटाले की शुरूआत 22 मई 2008 को उस वक्त हुई जब रेलवे ने लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन के लिए दोहरी मूल्य नीति बनाई। इस नीति के तहत घरेलू उपयोग के लिए लौह अयस्कों का ट्रांसपोर्ट करने वाले ट्रांसपोर्टरों को इसका निर्यात करने वालों की अपेक्षा सस्ती दरों पर ट्रांसपोर्ट करने की सुविधा दी गई। निर्यात के लिए लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा घरेलू उपयोग के लिए किए जाने वाले ट्रांसपोर्टेशन की तुलना में औसतन तीन गुना ज्यादा था।
तीन जोन की ऑडिट पर आधारित है रिपोर्ट
कैग ने रेल मंत्रालय को भेजे अपने ड्राफ्ट में कहा कि सरकार को बकाया राशियों से करीब 17 हजार करोड़ रूपए के राजस्व का नुकसान हुआ। यह आंकड़ा 75 लोडिंग प्वाइंट्स में से सिर्फ 26 और 41 अनलोडिंग प्वाइंट्स में से 10 की ऑडिट पर आधारित है। कैग की यह रिपोर्ट उन तीन जोन की ऑडिट पर आधारित है,जहां लौह अयस्क की सबसे ज्यादा लोडिंग होती है। इन जोन में दक्षिण पूर्वी, दक्षिण पश्चिम और पूर्व की सीमा शामिल है। इन जोन में ट्रांसपोर्टेशन मई 2008 से मार्च 2012 के बीच किया गया। कैग को कई ऎसे तथ्य मिले हैं जिससे पता चलता है कि निर्यातकों ने कैसे इस धोखाधड़ी को अंजाम दिया। घरेलू दरों पर ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा के लिए शपथ पत्र और क्षतिपूर्ति नोट जैसे दस्तावेज प्रस्तुत करना जरूरी था। ऑडिर्ट में पाया गया कि 126 पार्टियां ऎसी थी जिन्होंने मई 2008 से 31 मार्च 2012 के बीच लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन के लिए 386 रैक की बुकिंग के पहले इनमें से आवश्यक दस्तावेजों में से एक भी पेश नहीं किया।
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