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Ramesh Goyal |
सिरसा। भारत विकास परिषद् के राष्ट्रीय संयोजक रमेश गोयल ने कहा कि स्वास्थयप्रद व प्रसन्नता बढ़ाने वाले होली पर्व को रासायनिक रंगों के प्रयोग से अपवित्र न करें। उन्होंने कहा कि मुम्बई के डाक्टर मर्चेंट के अनुसार रंगो के जहरीले रसायन त्वचा के द्वारा जल्द ही खून में मिल जाते हैं और हिमोग्लोबिन के साथ प्रतिक्रिया कर बुद्धि ओर हृदय जैसे महत्वपूर्ण केन्द्रों को प्रभावित करते हैं। नेत्र विशेषज्ञ डा. मेहता का कहना है कि रासायनिक रंगों में चमक ऐसे हानिकारक पदार्थों से आती है जो कि नेत्र पटलों (श्वेत पटलों) को चीरकर हानि पहुंचा सकते हैं। पानी से भरे गुब्बारे तो इतने खतरनाक होते हैं कि मस्तिष्क व आखों को अंदरूनी घाव पहुुंचा सकते हैं। चर्म रोग विशेंषज्ञ रमेश बब्बू कानपुर का कहना है कि रासायनिक रंगों से त्वचा संक्रमण के अलावा आखों का अल्सर, कंजंक्टिवाइटिस और एलर्जी भी हो सकती है। गोयल ने कहा कि लैड आक्साइड, इंडस्ट्रीयल डाई और इंजिन तेल जैसे जहरीले पदाथो से युक्त रंग जब नदियों में प्रवेश करते हैं तो पानी और जमीनी मिट्टी को भी प्रदूषित करते हैं। उन्होंने देश व समाज की ज्वलंत समस्या जल की कमी से जोड़ते हुए कहा कि रंगों को उतारने व सफाई आदि में बहुत पानी खर्च होता है तथा वैश्विक तापमान, बढ़ते प्रदुषण व जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों में जल घट रहा है और अधिक भूजल दोहन के कारण जमीनी पानी का स्तर खतरनाक स्थिति में पंहुच गया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षित भविष्य के मद्देनजर अबीर-गुलाल लगाकर खुशियां सांझी करें और पानी वाले रंगों का प्रयोग न करें।
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