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सच और झूठ के बीच कोई तीसरी चीज नहीं होती और मैं सच के साथ हूं : छत्रपति       www.poorasach.com      

Monday, 15 December 2014

भारतीय समाज टूट चुका है

        अगर एक पंजाब का नौजवान शिमला घूमने चला जाये तो मालूम है वो वहां क्या करेगा ? वो वहाँ एक महंगा होटल बुक करेगा और रात को खूब रजके मीट खायेगा और शराब पियेगा और सुभह उठके घर लौट आएगा I एक अंग्रेज अगर शिमला जायेगा तो मालूम है क्या करेगा ? वो किसी पहाड़ी कि चोटी पे अपना टेंट गाड़ लेगा और रातभर बारिश में,ठण्ड में, तूफान में वहीँ रहेगा I वो बहुत सी समस्याओं से झूझेगा I क्योंकि वो खोजी, विद्रोही प्रवृति का है I हमारे लोग खोजी नहीं है वो आरामपरस्त है I और ये आरामपरस्ती कि आदत कहाँ से आई ? ये हमें धार्मिक लोगो ने सिखाई I
 


         धर्म सिखाता है कैसे आपने मुसीबतो से बचने के लिए हनुमान चालीसा पढना है ? कैसे रोज मंदिर जाना है ताकि अनर्थ न हो जाये I कैसे आपने शनि को तेल चढ़ाना है ताकि शनि का प्रकोप न पड़े I कैसे धार्मिक लोगो ने इस दुनिया को झूठा बताया और और हमारी निगाहे दूसरी दुनियां पे गाड़ दी I इससे क्या हुआ ? इससे हम पलायनवादी बन गए I हमने इस जीवन को नहीं समझा I अब हमारी सारी समस्याएं तो इस दुनियां कि है पर हमारे हाथ में सारे हल दूसरी दुनियां के है I इसका परिणाम ये हुआ कि हमारी कोई प्रोबलम हल नहीं हुई I मैं बड़ा हैरान होता हु कि हमारी सारी शिक्षा पद्धति पर भी धर्म कि छाप है I
             आपने देखा है कैसे टीचर एक पाठ पढ़ाता है तो वो अगले दिन नया पाठ ले के बैठ जाता है I उसको ये मतलब बिलकुल नहीं कि कल वाले पाठ में से बच्चो को कुछ आता है या नहीं I सिर्फ औपचारिकता कि जाती है I जैसे धर्म भी क्या है सिर्फ औपचारिकता है I वर्ना होना ये चाहिए कि पाठ पढ़ाते वक्त साथ-साथ ही बच्चो का टेस्ट होना चाहिए चाहे यह मैखिक ही क्यों न हो और फिर अगले दिन फिर 5 मिनिट का रिविज़न होना चाहिए और फिर साप्ताहिक टेस्ट होना चाहिए I लेकिन यहाँ अध्यापक आगे-आगे पढ़ाता चलता है और विधार्थी पीछे-पीछे भूलता चला जाता है यानि के 'शॉर्ट टर्म' कोई लक्ष्य नहीं I और परीक्षा के नजदीक जाकर बच्चे को कुछ नहीं आता I हमारी सारी सोच, हमारी सारी धारणाये पलायनवादी है I यही कारण है यहाँ अच्छे खिलाडी नहीं पैदा होते, यहाँ कोई खोज नहीं होती I दुनिआ कि टॉप कि 200 युनिवर्सिटियों में से हमारी यूनिवर्सिटी एक भी नहीं है I ओलम्पिक खेलो में हमारा नाम सूचि में सबसे नीचे होता है I
           इस सारे कि जड़ में कही न कही धर्म बैठा है I क्योंकि धर्म ने केह दिया कि ये संसार तो मिथ्या हैI जब संसार है ही मिथ्या है तो फिर कुछ हासिल करने को कुछ रहता ही नहीं और फिर इतने जोखिम लेने कि क्या जरूरत है ? यही कारण है यहां वर्क कल्चर नहीं पैदा हुआ, यहां काम करने की संस्कृति पैदा नहीं हुई I यही कारण है यहाँ कोई काम करके राजी नहीं I काम करने का क्या फायदा जब हमारी मंजिल तो आत्मा परमात्मा है I अब शरीर तो आनंद मांगेगा, इसलिए हमारी प्रवृति विलासता की बन गयी है I आनंद तो अंग्रेज लेते है I आप तब तक आनंद नहीं ले सकते जब तक आप ज्ञात से अज्ञात कि और नहीं जाते जैसे वो अंग्रेज पहाड़ो पर टेंट लगा लेता है I और जो भारतीय होटल में मीट खाके लौट आता है वो विलासता कि जिंदगी जी रहा है क्योकि वो ज्ञात में ही जी रहा है I
         यही कारण है कि भारतीए लोग आपको हमेशा अतीत कि और लेकर जायेंगे क्योंकि उन्होंने वर्त्तमान में कुछ किया ही नहीं I अगर गहराई में जाकर देखो तो सारा भारत आपस में अतीत पर झगड़ रहा है I ये भी एक तरह कि विलासता है, निठल्लापन है I यहाँ तो सारे अपनी -अपनी गठड़ी बांधे अगले जन्म कि तैयारी में है, इसलिए इस जन्म में कुछ हुआ ही नहीं और इसलिए ये अपनी कमियां छुपाने के लिए आपको अपने पूर्वजो कि गाथाये सुनाएंगे I इनकी अपनी कोई उपलब्धि नहीं है, इनकी अपनी किसी कहानी ने जन्म ही नहीं लिया I हमारे देश कि सारी समस्याएं जैसे भरस्टाचार ,अत्याचार, बलात्कार,हिंसा और बेईमानी इस प्रवृति से जन्म लेती है I अतः हमें ये रूल; तोडना होगा I याद रखो कि अगर आपने बहुत दूर भी जाना है तो शुरुवात आपको बहुत नजदीक से करनी होगी I भारतीए समाज असल में टूट चूका है क्योंकि इस पलायनवादी प्रवृत के तेहत ये जीवन से आज तक भागता रहा है I अगर ये जिंदगी का सामना करता तो जीवन ऊर्जा पैदा होनी थी, उमंग पैदा होनी थी, लेकिन ये तो हमेशा से जीवन से दूर भाग रहा है इसलिए अब बिलकुल थक-टूट चूका हैI                                                                                                    जे. एस. ब्रेकानन्द

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