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सच और झूठ के बीच कोई तीसरी चीज नहीं होती और मैं सच के साथ हूं : छत्रपति       www.poorasach.com      

Wednesday, 21 September 2011

दिल्ली के साथ दिल भी तो साफ करो बाबा जी!

अंशुल छत्रपति
    डेरा सच्चा सौदा ने दिल्ली में आज एक नया ड्रामा रचा है। दिल्ली साफ करने के लिए डेरा अपने अनुयायियों को इक_ा करके ले गया और राजघाट से सफाई अभियान का आरम्भ स्वयं डेरा मुखी ने किया। अच्छा काम है, बिल्कुल मोदी के अनशन जैसा। गांधीवादी तरीकों पर उतरे सभी पापियोंं को ना जाने क्यंू पाप करते वक्त गांधी याद नहीं आते और जब उनकी गर्दन पर शिकंजा कसा जाता है या उन्हें अपना कद किसी के सामने दिखाना होता है तब वे गांधी को याद करने लगते हैं। गांधी जी! यह दौर आपके विचारों और आपके तरीकों के प्रयोग का खतरनाक दौर है। डेरा मुखी पर कानून का शिकंजा जब-जब कसा जाता रहा है तब-तब डेरा ने उत्पात मचाया है। कभी बसें फूंकना, कभी आत्महत्या के हल्फनामे सरकार को देना, कभी अदालतों के बाहर अनुयायियों को ही आत्महत्या के लिए उत्साहित करना, हथियारों डंडों से लैस होकर अनुयायियों का पेशी के दिन मौजूद रहना डेरा सच्चा सौदा के कुछ आम कार्यों में से हैं। लेकिन देश के तमाम लोग जानते हैं कि ऐसे टोटकों से कुछ हासिल नहीं होता। डेरा को पहले लगता था कि कानून को भीड़ से डराया जा सकता है। अब लगता है देश के प्रभावी लोगों को भीड़ तो दिखाई ही जाए, बेशक किसी भी तरीके से।
    सफाई करने के लिए जिस भावना की जरूरत होती है वह भावना डेरा अनुयायियों में तो हो सकती है लेकिन सफाई अभियान को हरी झंडी दिखाने वाले और इस अभियान को प्लान करने वालों में भी होगी, यह असंभव लगता है। ये सभी लोग राजनीति के तमाम टोटकों को राजनीतिज्ञों से भी बेहतर समझते हैं। राजधानी में सफाई की उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी अन्य छोटे शहरों में है। लेकिन राजधानी में सफाई करने के मायने अलग हैं और गुमनाम शहर में ऐसा अभियान चलाने के मायने कुछ और। तीन-तीन केसों में सीबीआई द्वारा चार्जशीटिड डेरामुखी हर हफ्ते पेशी भुगतते हैं, हर पेशी के बाद मुश्किलें बढ़ती नजर आती हैं। ऐसे में दिल्ली में सफाई अभियान के बहाने अपनी भीड़ का प्रभाव दिखाना डेरा मुखी की मजबूरी है। अन्ना के तरीकों और ताजातरीन प्रभाव को कुछ असामाजिक लोग भुनाएंगे, ऐसा डर अब यथार्थ रूप में सामने आने लगा है।

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