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Sunday, 19 October 2014

हरियाणा में भाजपा उदय, सिरसा में इनेलो 'सरकार'

 चुनाव परिणाम आए। जैसा संभावित था, वैसा ही हुआ। प्रदेश में कभी पूरी सीटों पर लडऩे का माद्दा न रख पाने वाली भारतीय जनता पार्टी मोदी लहर पर सवार होकर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। भाजपा को प्रदेश में 47 सीटें मिलीं जबकि इंडियन नेशनल लोकदल करीब 20 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में आया। इसी के साथ लगातार दो बार प्रदेश में सत्तासीन रही कांग्रेस पार्टी विपक्ष में बैठने के लिए भी जनमत नहीं जुटा पाई। भाजपा को प्रदेश में बहुमत तो मिला, लेकिन खास बात यह रही कि हिसार रेंज, खास तौर पर सिरसा संसदीय क्षेत्र में बीजेपी की फुलऑन एंट्री नहीं हो पाई। सिरसा जिला की तो पांचों सीटों पर बीजेपी दूसरा स्थान पाने के लिए भी मशक्कत करती दिखी। न तो यहां प्रधानमंत्री मोदी का जादू   चला और न ही डेरा सच्चा सौदा का समर्थन बीजेपी प्रत्याशियों को जिताने में कामयाब हो पाया। सिरसा की पांचों विधानसभा सीटों पर इनेलो काबिज हुई। इसमें एक और खास बात यह रही कि लंबे अरसे बाद इनेलो अपने गृहक्षेत्र सिरसा में जीत हासिल करने में कामयाब हो पाई। इसे इनेलो के लिए एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। चुनाव नतीजों के मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करती एक रिपोर्ट...

डेरा बाबा सुपर-डुपर फेल

विधानसभा चुनावों में जैसे ही डेरा सच्चा सौदा ने भाजपा को खुला समर्थन देने का ऐलान किया तो ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि सिरसा संसदीय क्षेत्र में परिणामों को प्रभावित करने में यह फैक्टर बड़ा साबित होगा। लेकिन परिणामों को देखा जाए तो डेरा का समर्थन का ढोल उसी तरह फटा है, जिस तरह पिछली दो बार से लगातार फटता आया है। 
चुनावों में बीजेपी शुरू से लोकसभा की भांति 'मोदी की लहर' पर सवार होकर उतरी। लेकिन लोकसभा चुनावों में सिरसा  और हिसार संसदीय क्षेत्र में मोदी लहर कोई असर नहीं दिखा पाई और ये दोनों सीटें ही इनेलो के खाते में गई। संसदीय चुनावों में भाजपा ने सिरसा में मोदी की रैली न होने को हार का कारण माना। लेकिन भाजपा को जल्द ही यह भान हो गया कि मोदी फैक्टर यहां इनेलो की काट नहीं कर पाएगा। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों ने डेरा को डंडा दिखाकर एक डील की। इस डील के तहत मोदी की रैली में भीड़ का एक बड़ा हिस्सा डेरा को जुटाने के आदेश दिए गए। जैसा कि हालातों से पता चला, डेरा की शर्त यह थी कि यदि प्रधानमंत्री स्वयं अपने मुंह से डेरा सच्चा सौदा का नाम बोलेंगे तो डेरा खुलकर समर्थन करने का फैसला कर देगा। सिरसा रैली का ताम-झाम देख रहे प्रो. गणेशी लाल ने बड़ी चतुरता से रैली में प्रधानमंत्री के समक्ष एक पत्री रख दी जिसमें क्षेत्र के लगभग सभी धार्मिक डेरों के नाम लिखे थे। ऐसे में मोदी ने एक-एक कर सभी डेरों का नाम बोलना शुरू किया। जैसे ही मोदी के मुंह से 'मस्ताना का सच्चा सौदाÓ निकला तो भीड़ में मौजूद डेरा प्रेमियों ने हूटिंग शुरू कर दी। इससे मोदी को शायद कुछ वहम हुआ और उन्होंने डेरा  सच्चा सौदा का नाम फिर से लेते हुए 'आशीर्वाद लेने आया हूं' की बात कह डाली। फिर क्या था, अगले ही दिन डेरा सच्चा सौदा की ओर से भाजपा को खुले समर्थन की घोषणा कर दी गई।
डेरा की मानें तो उसके सिरसा हल्के में 20-30 हजार, रानियां में सबसे अधिक 30-35 हजार, ऐलनाबाद में 12-18 हजार तथा डबवाली और कालांवाली में भी करीब 10-10 हजार समर्थक हैं। ऐसे में यदि परिणामों पर गौर करें या तो डेरा के इतने श्रद्धालु होने का वहम दूर होता है या फिर विभिन्न दलों के समर्थन मांगने का! यदि मान भी लिया जाए कि डेरा के इतने श्रद्धालु हैं तो फिर सवाल यह भी पैदा होता है कि डेरा के श्रद्धालुओं ने क्या डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह की ही नहीं मानी? क्योंकि परिणामों के हिसाब से सिरसा में बीजेपी प्रत्याशी सुनीता सेतिया को 38742 मत मिले हैं। इसमें बीजेपी का अपना वोट बैंक, मोदी लहर से अन्य दलों से टूटकर आए मत और प्रत्याशी सुनीता सेतिया का अपना वोट बैंक भी शामिल है। ऐसे में डेरा का समर्थन पाने के बाद भी यदि सुनीता सेतिया तीसरे स्थान पर रहती हैं तो क्या माना जाए?
दूसरी ओर रानियां में सबसे अधिक श्रद्धालु होने का दंभ भरने वाले डेरा की हवा इससे ही निकल जानी चाहिए कि बीजेपी प्रत्याशी जगदीश नेहरा को कुल 19790 मत मिले और वे चौथे पायदान पर रहे।  वहीं डबवाली में बीजेपी के देव शर्मा 22261 मतों के साथ तीसरे, कालांवाली में राजेन्द्र देसूजोधा 17005 मतों के साथ तीसरे तथा ऐलनाबाद में अभय चौटाला को पटखनी देने की कोशिश में जुटे पवन बेनीवाल दूसरे स्थान पर रहे।
ऐसे में देखा जाए तो डेरा के गृह में भी उसका फैक्टर नहीं चला जिसके लिए खास तौर पर प्रधानमंत्री के मुंह से डेरा का नाम उगलवाया गया।
बता दें कि इससे पूर्व पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह अपने समधि को भी जिताने में असफल रहे थे। उस दौरान डेरा ने पंजाब में कांग्रेस का समर्थन किया था जबकि कांग्रेस चारों खाने चित्त हुई थी। उसके बाद हरियाणा में जब-जब डेरा ने अपना दम आजमाना चाहा, उसके दावों की हवा ही निकली है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा द्वारा जिन चुनिंदा प्रत्याशियों को समर्थन किया, उनमें से ज्यादातर दूसरे पायदान पर भी नहीं टिके।
यदि अब भी डेरा के वोटबैंक का गुमान नेताओं और दलों के दिमाग से नहीं निकलता है तो इसे राजनीतिज्ञों की कूटनीतिक तौर पर छोटी सोच ही माना जाना चाहिए।

इनेलो का सिरसा का सपना हुआ पूरा

चुनाव परिणामों के कुछ खास पहलुओं में एक इनेलो का सिरसा हल्के में जीतने का सपना पूरा होना भी है। उल्लेखनीय है कि पिछले करीब तीन दशक से इनेलो सिरसा जिला की लगभग सभी सीटों पर चुनाव जीतती रही है, लेकिन अपना गृह क्षेत्र सिरसा हल्का कभी भी उसके हाथ नहीं आया। लछमण दास अरोड़ा ने पांच बार सिरसा का प्रतिनिधित्व किया तो इनेलो उनका चक्रव्यूह तोडऩे में कभी कामयाब नहीं हुआ। पिछले विधानसभा चुनावों में इनेलो से बागी होकर निर्दलीय लड़े गोपाल कांडा ने सिरसा में जीत दर्ज की। कांडा बाद में कांग्रेस को समर्थन देकर सरकार में शामिल हो गए। इससे इनेलो का सिरसा में जीत का सपना एक बार फिर से धूमिल हो गया। सिरसा हल्का को इस बार इनेलो ने जैसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। ऐसे में इस सीट से ऐसे प्रत्याशी को उतारा गया जो कांडा को धन बल के मामले में पूरी टक्कर दे पाता। मक्खन सिंगला के रूप में उन्हें ऐसा प्रत्याशी मिला और सिंगला और इनेलो की मैनेजमेंट ने वह कारनामा कर दिखाया जो वह करना चाहते थे। चुनाव परिणाम के दौरान एक वक्त ऐसा भी आया जब कांडा की जीत तय मानी जाने लगी लेकिन अंतिम तीन राउंड में पासा पूरी तरह पलट गया और इंडियन नेशनल लोकदल के मक्खन सिंगला ने कांडा को 2938 मतों से पराजित कर दिया। 

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