अरिदमन
डेरा सच्चा सौदा के कुख्यात प्रमुख गुरमीत सिंह की फिल्म चर्चा में है। चर्चा फिल्म की कहानी को लेकर होती तो शायद सार्थक साबित होती लेकिन यहां चर्चा फिल्म के निर्माण को लेकर अधिक गर्म है। कथित रूप से एक धार्मिक संगठन के प्रमुख होने के नाते फिल्म में अभिनय धार्मिक लोगों के ही गले नहीं उतर रहा। वहीं, इस फिल्म के निर्माण के पीछे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कारण की बात भी करेंगे लेकिन मेरा व्यक्ति तौर पर मानना है कि यदि फिल्म वास्तव में मनोरंजन के लिए बनी फिल्म है तो उसका विरोध जायज नहीं ठहराया जा सकता!
लेकिन पिछले दिनों घटे कुछ घटनाक्रमों पर नजर दौड़ाई जाए तो यह फिल्म मनोरंजन से अधिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति, एक संस्थान के प्रचार के अलावा ऐसे कई कारणों को लेकर बनाई गई प्रतीत होती है, जो संवैधानिक रूप से जायज नहीं है। लेकिन बात वही है, जैसी बीबीसी के एक संवाददाता ने इस फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद समीक्षा करते हुए कही कि 'इट हैपंस ऑनली इन इंडिया'।
फिल्म निर्माण के कारण कई हैं और गहराई में जाया जाए तो डेरा प्रमुख ने इस फिल्म से एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। इनमें सबसे बड़ा कारण है हदों को लांघती महत्वाकांक्षाएं। गुरमीत सिंह ने डेरा सच्चा सौदा के गद्दीनशीन होते हुए हर लुत्फ उठाने की कोशिश की है। हर क्षेत्र में अपना दबदबा दिखाने की महत्वाकांक्षा इस कदर डेरा प्रमुख पर हावी हो चुकी है कि अगर इसे सनक का नाम दिया जाए तो गलत न होगा। इससे पूर्व स्पोट्र्स कार, बाइक चलाना, डांस, गाना आदि दिखाकर डेरा प्रमुख ने इसी सनक का परिचय दिया। यह फिल्म भी इसी सनक का नतीजा है। डेरा प्रमुख बॉलीवुड ही नहीं, हॉलीवुड हीरो का खिताब पाना चाहता है और हर क्षेत्र की तरह यहां भी रिकॉर्ड की इच्छा रखता है। उसके पास बिना मेहनत का अथाह धन है। अपना स्टूडियो है। अपना प्रोडक्शन हाउस है और सबसे बड़ी बात अंधभक्तों की फौज है। इसी कारण इस फिल्म में अभिनेता ही नहीं, बाकी के सभी कार्यों का श्रेय भी अकेले गुरमीत सिंह को दिया गया है और यह दिखाने की कोशिश की गई है कि वह हर फन में माहिर है। फिल्म में क्या दिखाया गया है, यह तो सेंसर बोर्ड के सदस्यों के बयानों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है, जिन्होंने इसे एक लंबा विज्ञापन बताते हुए पास करने पर सवालिया निशान लगाए। फिल्म को अंधभक्तों या किसी स्वार्थ के अलावा कोई शायद ही देखे लेकिन यह फिल्म रिकॉर्ड बना सकती है... ठीक वैसे ही, जैसे पिछले दिनों गुरमीत सिंह द्वारा गाए गानों की एक ऑडियो एलबम सबसे अधिक बिक्री का रिकॉर्ड बना चुकी है!
दूसरा कारण काले धन को सफेद करने का भी रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि फिल्म को देशभर के 3000 से अधिक सिनेमा घरों में दिखाया जाना है और कुछ अन्य देशों में भी। फिल्म यदि मनोरंजक हो तो उसे लोग स्वयं देखने आते हैं जिससे फिल्म की कमाई का अंदाजा लगाया जाता है। लेकिन यहां मनोरंजन के नाम पर डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह का बेडौल शरीर और उसके गाए बेसुरे गीत परोसे गए हैं। कम से कम अंध भक्तों के अलावा किसी को इसमें रस नहीं दिखता! ऐसे में यह तय है कि पूर्व की भांति रिकॉर्ड बनाने के लिए गुरमीत सिंह द्वारा स्वयं ही फिल्म के सभी शो 'हाउस फुल' करवा दिए जाएंगे। बताया जा रहा है कि कई सिनेमाघरों की कई दिनों के लिए बुकिंग हो भी चुकी है। आखिर कमाई का रिकॉर्ड जो बनाना है! डेरा के अकूत काले धन का इस्तेमाल इससे बेहतर और फिर कहां किया जा सकता है?
एक अन्य और सबसे महत्वपूर्ण कारण इस फिल्म को बनाने के पीछे 'मैनेजमेंट' भी रहा है। गुरमीत सिंह पर हत्या, अपनी साध्वियों से बलात्कार और करीब 400 साधुओं को नपुंसक बनाने के जघन्य आरोप हैं। किसी आम व्यक्ति पर यदि छेड़छाड़ का आरोप भी लगे तो चंद घंटों में सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता है लेकिन इतने जघन्य अपराधों के बावजूद यदि आरोपी बाहर है तो इसमें हर स्तर की मैनेजमेंट है। राजनीतिक मैनेजमेंट तो वोटों के दम पर हो जाती है लेकिन यदि 'मीडिया मैनेजमेंट' में कमी रह जाए तो राजनीतिक मैनेजमेंट किसी काम की नहीं रहती। और मीडिया को मैनेज करने के लिए आज के दौर में अथाह धन की जरूरत रहती है। ऐसे में फिल्म के बहाने पेड साक्षात्कार, फिल्म के विज्ञापन आदि के बहाने यदि मीडिया मैनेज होता है तो बुराई क्या है! मीडिया को देने तो हैं ही, कुछ काम तो लिया जाए!
...तो पाखंड का विरोध तो करना बनता है!
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