अंशुल छत्रपति
आज एक ज्वलंत सवाल प्रत्येक बुद्धिजीवी के दिमाग में कौंध रहा है कि अन्ना हजारे के लोकपाल बिल को यदि सरकार संसद से पारित करवा देती है तो क्या भ्रष्टाचार का समूल नाश हो पाएगा? देश में नीचे से लेकर ऊपर तक सारा ढांचा भ्रष्टाचार की गर्त में डूबा हुआ है। एक से बढ़कर एक सामने आ रहे घोटालों ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक ताने-बाने को भी झिंझोड़ कर रख दिया है। खास बात यह रही कि इन घोटालों में देश के वजीर और आला अफसर शामिल थे।
कॉमनवेल्थ खेल घोटाले ने देश की साख को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी धूमिल कर दिया। इन घोटालों ने आज हमारे देश को सबसे भ्रष्ट देशों की कतार में टॉप पर ला दिया है। यह शर्मनाक तथ्य हमारे देश की सत्ता के लिए चिंता का विषय होने चाहिएं थे। लेकिन सत्ता में आसीन नेता नहीं चाहते कि कोई ऐसा सशक्त कानून बने जिससे उन पर नकेल डाली जा सके। जबकि भ्रष्टाचार से त्रस्त देश की जनता चाहती है कि पटवारी से लेकर प्रधानमंत्री तक को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के दायरे में रखा जाए। प्रत्येक कर्मचारी, अधिकारी, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। सैंकड़ों वर्ष अंग्रेजों की गुलामी झेल चुके देश के नागरिक अब जाग रहे हैं। शहीदे आजम भगत सिंह ने भी कहा था कि गोरे अंग्रेज देश से चले जाएं और काले अंग्रेज आकर बैठ जाएं, हमें ऐसी व्यवस्था कदापि मंजूर नहीं। हम व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं। परंतु दुर्भाग्य है कि हमारा देश भगत सिंह के सपनों का भारत नहीं बन पाया।
कॉमनवेल्थ खेल घोटाले ने देश की साख को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी धूमिल कर दिया। इन घोटालों ने आज हमारे देश को सबसे भ्रष्ट देशों की कतार में टॉप पर ला दिया है। यह शर्मनाक तथ्य हमारे देश की सत्ता के लिए चिंता का विषय होने चाहिएं थे। लेकिन सत्ता में आसीन नेता नहीं चाहते कि कोई ऐसा सशक्त कानून बने जिससे उन पर नकेल डाली जा सके। जबकि भ्रष्टाचार से त्रस्त देश की जनता चाहती है कि पटवारी से लेकर प्रधानमंत्री तक को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के दायरे में रखा जाए। प्रत्येक कर्मचारी, अधिकारी, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। सैंकड़ों वर्ष अंग्रेजों की गुलामी झेल चुके देश के नागरिक अब जाग रहे हैं। शहीदे आजम भगत सिंह ने भी कहा था कि गोरे अंग्रेज देश से चले जाएं और काले अंग्रेज आकर बैठ जाएं, हमें ऐसी व्यवस्था कदापि मंजूर नहीं। हम व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं। परंतु दुर्भाग्य है कि हमारा देश भगत सिंह के सपनों का भारत नहीं बन पाया।
चलिए देर से ही सही लेकिन आजाद भारत के गुलाम नागरिक आखिरकार जागे तो सही। आवश्यकता है व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की। सवाल यह है कि जन लोकपाल कानून व्यवस्था में किस हद तक बदलाव ला पाएगा। यदि हम हालात पर नजर दौड़ाएं, तो देश में सूचना का अधिकार कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा हथियार साबित हो रहा है। हालांकि लोगों में कानून के प्रति जानकारी का अभाव है, लेकिन परिणाम सकारात्मक आ रहे हैं। इसी प्रकार सशक्त लोकपाल बिल से भी व्यवस्था में परिवर्तन अवश्य आएगा। जरूरत है केवल आम नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की। अगर हम बदलाव चाहते हैं तो सबसे पहले हमें स्वयं को बदलना होगा। प्रण लेना होगा कि हम न तो स्वयं भ्रष्टाचार में शामिल होंगे और भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाएंगे।
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