वीरेन्द्र भाटिया
देश में जश्न का माहौल है। हालांकि सरकार अपने ए.सी. रूम में बैठी जनता पर हंस भी रही होगी कि जश्न किस बात का! ना हमने अन्ना की प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात मानी, ना संासदों को लाने की और ना ही न्यायपालिका को लाने की! हम तो कहते रहे कि ये बातें स्टेंडिंग कमेटी में जाकर जुड़वा लो। हमने 12 दिन जरूर लिए, लेकिन वो तीनों बातें नेपथ्य में डाल दी। आपकी इस जिद को भी नहीं माना कि मसौदा स्टैंडिंग कमेटी को ना भेजा जाए और बिल 31 अगस्त तक पास हो। संसद अपने ऊपर किसी को कैसे बैठने देती। इस बात की जिद पर हम अड़े रहे और देश को हमने एक बार फिर बरगला दिया।
लेकिन फिर भी जनता के पास जश्न मनाने का कारण है। कारण यह है कि संसदीय इतिहास में पहली बार इस तरह जनता के दबाव के कारण किसी मुद्दे पर चर्चा हुई है और उस पर पूरे सदन की सहमति हुई है। जश्न का कारण यह है कि जनता के इस मंतव्य की जीत हुई है कि संसद में भेजे लोग जब अपना काम ठीक से नहीं कर रहे तो जनता का प्रहरी बन जाना अनुचित नहीं है। और जश्न का यह कारण भी है कि अन्ना के आंदोलन के बाद देश भर में सामाजिक आंदोलनों के लिए दोबारा कुछ जगह बनती नजर आती है, जो 1990 के मनमोहन के उदारीकरण के कारण धूमिल पड़ रही थी। देश के नक्सलवादियों को अब बंदूक छोड़ देनी चाहिए और अपने बीच में से कोई अन्ना ढूंढ लेना चाहिए। राज कुमार हिरानी कल अन्ना के मंच से बोल रहे थे कि जब मैंने गांधीगिरी पर फिल्म बनाई तो लोगों ने कहा कि ये सब चीजें अब किताबों के लिए हैं। लेकिन अन्ना जैसे लोग ही सिद्ध करते हैं कि किताबों में लिखी बातेें ही सड़कों पर क्रियान्वित होती हैं और सड़कों पर सच हुई बातें ही किताबों में जाती हैं।
हालांकि किसी को आईना दिखाने का वक्त नहीं है और यह नैतिकता भी नहीं है, लेकिन बाबा रामदेव से हमें उम्मीदें हैं। इसलिए उन्हें अन्ना हजारे से सीखना चाहिए कि आंदोलन को चलाना, अहिंसा के दायरे में रखना, पूरी संसद द्वारा प्रशंसा करने के बाद भी फूल कर कुप्पा ना होना, 12 दिन अनशन के बावजूद टिके रहना और संयमित रहना योग करने से नहीं आता। देश को योगी बाबा से इसलिए उम्मीद हो आई थी कि बाबा एक महीना तो कम से अनशन पर टिक ही जाएंगे। शायद सरकार भी यही सोच कर डर गई थी कि बाबा एक महीना टिक गए तो सरकार की मिट्टी हो जाएगी। फिर बाबा के पास मुद्दा भी क्या था, देश की जनता आज भूल गई है। और बाबा के सिपहसलार कौन थे, यह भी देश नहीं जानता। देश यह जानता है कि बाबा ने एक-एक दिन में 6 बार प्रैस कान्फ्रेंस ली, सुबह-सुबह योगा किया और अन्य फालतू कामों में अपनी ऊर्जा का क्षय किया जो अन्ना ने सहेज कर रखी। बाबा हीरो बनने की आकांक्षा लेकर आये थे जबकि अन्ना काम लेकर आये थे। हीरो स्क्रिप्ट पर एक्ट करता है लेकिन काम हमेशा जमीन पर होता है। काम करने वाला टिका रहा लेकिन स्क्रिप्ट पर एक्ट करने वाला बिफर पड़ा, जब अकेले सिब्बल ने उसकी स्क्रिप्ट बदल दी। अन्ना ने मनीष तिवारी को अपना थूका चाटने पर विवश किया। सिब्बल को बुरी तरह पीछे धकेला और बड़े से बड़े आदमी को बौना साबित कर दिया।
देश में बहुत से लोग अपनी अपनी मांगों को लेकर धरने प्रदर्शन पर हैं। कुछ बरसों से हैं लेकिन सरकार उनकी सुन नहीं रही। सुनाने का तरीका अन्ना ने देश को दे दिया है। गांधीगिरी पुन: अपनी ताकत के साथ व्यवस्था के सामने खड़ी है। बाबा रामदेव के अनशन से आम आदमी के आंदोलन को बल नहीं मिल सकता था क्योंकि वह फाईव स्टार आंदोलन था और पैसे लत्ते की कमी नहीं थी। आम आदमी को इस बात से कैसे प्रेरणा मिल सकती थी, जिसने बिना किसी जुगाड़ के आंदोलन खड़ा करना हो। हालांकि केजरीवाल का एन.जी.ओ. आज करोड़ों का मालिक है लेकिन मुख्य सिम्बल अन्ना है जो फकीर है, बिना बैंक बैलेंस का आदमी है। गांधी के पीछे भी बिरला खड़ा था लेकिन सिम्बल तो गांधी ही थे, जो फकीरी के प्रतीक थे और महात्मा के संबोधन से विभूषित थे। विभूषण तो रामदेव के पास भी बाबा का था लेकिन गांधीगिरी और बाबागिरी में फर्क है, खासकर आज के संदर्भ में।
बाबा रामदेव आज नेपथ्य में हैं, आत्ममंथन का दौर है, देश के सभी बाबाओं के लिए खास कर। उनके लिए भी जो सरकार के प्रश्रय पर हैं, जो सरकार के बिचौलिए हैं और जो एक आवाज पर बाबा का अनशन तुड़वाने चले गये थे। शायद उन्हें यह भी लगा होगा कि वह अन्ना को भी डिगा देंगे। लेकिन बाबा तो खुद अनशन तोडऩा चाहते थे। अन्ना ने उन सभी धर्मगुरूओं को जमीन दिखाई जो सरकार के लिए काम करते हैं। उन सभी बड़े-बड़े नामों को बौना साबित किया जिसके लिए टी.वी. एंकर गला फाड़कर बोलता रहा कि इस वक्त अन्ना के मंच पर फलां शख्सियत पहुंची है, इस वक्त की सबसे बड़ी खबर, शायद वह शख्सियत अन्ना का अनशन तुड़वा दे, वह अन्ना से बात कर रही है। और पांच मिनट में बड़ी खबर बनी वह शख्सियत अन्ना के सामने बौनी साबित होती रही। और यह इसलिए हुआ क्योंकि अन्ना के पीछे जनता खड़ी है और जनता उसी के पीछे खड़ी होती है जो स्वयं को महात्मा सिद्ध करता है। गांधी के बाद अन्ना ने यह सिद्ध किया है।
लेकिन फिर भी जनता के पास जश्न मनाने का कारण है। कारण यह है कि संसदीय इतिहास में पहली बार इस तरह जनता के दबाव के कारण किसी मुद्दे पर चर्चा हुई है और उस पर पूरे सदन की सहमति हुई है। जश्न का कारण यह है कि जनता के इस मंतव्य की जीत हुई है कि संसद में भेजे लोग जब अपना काम ठीक से नहीं कर रहे तो जनता का प्रहरी बन जाना अनुचित नहीं है। और जश्न का यह कारण भी है कि अन्ना के आंदोलन के बाद देश भर में सामाजिक आंदोलनों के लिए दोबारा कुछ जगह बनती नजर आती है, जो 1990 के मनमोहन के उदारीकरण के कारण धूमिल पड़ रही थी। देश के नक्सलवादियों को अब बंदूक छोड़ देनी चाहिए और अपने बीच में से कोई अन्ना ढूंढ लेना चाहिए। राज कुमार हिरानी कल अन्ना के मंच से बोल रहे थे कि जब मैंने गांधीगिरी पर फिल्म बनाई तो लोगों ने कहा कि ये सब चीजें अब किताबों के लिए हैं। लेकिन अन्ना जैसे लोग ही सिद्ध करते हैं कि किताबों में लिखी बातेें ही सड़कों पर क्रियान्वित होती हैं और सड़कों पर सच हुई बातें ही किताबों में जाती हैं।
हालांकि किसी को आईना दिखाने का वक्त नहीं है और यह नैतिकता भी नहीं है, लेकिन बाबा रामदेव से हमें उम्मीदें हैं। इसलिए उन्हें अन्ना हजारे से सीखना चाहिए कि आंदोलन को चलाना, अहिंसा के दायरे में रखना, पूरी संसद द्वारा प्रशंसा करने के बाद भी फूल कर कुप्पा ना होना, 12 दिन अनशन के बावजूद टिके रहना और संयमित रहना योग करने से नहीं आता। देश को योगी बाबा से इसलिए उम्मीद हो आई थी कि बाबा एक महीना तो कम से अनशन पर टिक ही जाएंगे। शायद सरकार भी यही सोच कर डर गई थी कि बाबा एक महीना टिक गए तो सरकार की मिट्टी हो जाएगी। फिर बाबा के पास मुद्दा भी क्या था, देश की जनता आज भूल गई है। और बाबा के सिपहसलार कौन थे, यह भी देश नहीं जानता। देश यह जानता है कि बाबा ने एक-एक दिन में 6 बार प्रैस कान्फ्रेंस ली, सुबह-सुबह योगा किया और अन्य फालतू कामों में अपनी ऊर्जा का क्षय किया जो अन्ना ने सहेज कर रखी। बाबा हीरो बनने की आकांक्षा लेकर आये थे जबकि अन्ना काम लेकर आये थे। हीरो स्क्रिप्ट पर एक्ट करता है लेकिन काम हमेशा जमीन पर होता है। काम करने वाला टिका रहा लेकिन स्क्रिप्ट पर एक्ट करने वाला बिफर पड़ा, जब अकेले सिब्बल ने उसकी स्क्रिप्ट बदल दी। अन्ना ने मनीष तिवारी को अपना थूका चाटने पर विवश किया। सिब्बल को बुरी तरह पीछे धकेला और बड़े से बड़े आदमी को बौना साबित कर दिया।
देश में बहुत से लोग अपनी अपनी मांगों को लेकर धरने प्रदर्शन पर हैं। कुछ बरसों से हैं लेकिन सरकार उनकी सुन नहीं रही। सुनाने का तरीका अन्ना ने देश को दे दिया है। गांधीगिरी पुन: अपनी ताकत के साथ व्यवस्था के सामने खड़ी है। बाबा रामदेव के अनशन से आम आदमी के आंदोलन को बल नहीं मिल सकता था क्योंकि वह फाईव स्टार आंदोलन था और पैसे लत्ते की कमी नहीं थी। आम आदमी को इस बात से कैसे प्रेरणा मिल सकती थी, जिसने बिना किसी जुगाड़ के आंदोलन खड़ा करना हो। हालांकि केजरीवाल का एन.जी.ओ. आज करोड़ों का मालिक है लेकिन मुख्य सिम्बल अन्ना है जो फकीर है, बिना बैंक बैलेंस का आदमी है। गांधी के पीछे भी बिरला खड़ा था लेकिन सिम्बल तो गांधी ही थे, जो फकीरी के प्रतीक थे और महात्मा के संबोधन से विभूषित थे। विभूषण तो रामदेव के पास भी बाबा का था लेकिन गांधीगिरी और बाबागिरी में फर्क है, खासकर आज के संदर्भ में।
बाबा रामदेव आज नेपथ्य में हैं, आत्ममंथन का दौर है, देश के सभी बाबाओं के लिए खास कर। उनके लिए भी जो सरकार के प्रश्रय पर हैं, जो सरकार के बिचौलिए हैं और जो एक आवाज पर बाबा का अनशन तुड़वाने चले गये थे। शायद उन्हें यह भी लगा होगा कि वह अन्ना को भी डिगा देंगे। लेकिन बाबा तो खुद अनशन तोडऩा चाहते थे। अन्ना ने उन सभी धर्मगुरूओं को जमीन दिखाई जो सरकार के लिए काम करते हैं। उन सभी बड़े-बड़े नामों को बौना साबित किया जिसके लिए टी.वी. एंकर गला फाड़कर बोलता रहा कि इस वक्त अन्ना के मंच पर फलां शख्सियत पहुंची है, इस वक्त की सबसे बड़ी खबर, शायद वह शख्सियत अन्ना का अनशन तुड़वा दे, वह अन्ना से बात कर रही है। और पांच मिनट में बड़ी खबर बनी वह शख्सियत अन्ना के सामने बौनी साबित होती रही। और यह इसलिए हुआ क्योंकि अन्ना के पीछे जनता खड़ी है और जनता उसी के पीछे खड़ी होती है जो स्वयं को महात्मा सिद्ध करता है। गांधी के बाद अन्ना ने यह सिद्ध किया है।
लेखक पूरा सच समाचार पत्र के स्तंभ लेखक हैं
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