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Saturday 25 June 2011

हर दिन हत्या

शहर में दिन.प्रतिदिन बढ़ रही हत्या की घटनाएं चिंता का विषय हैं। सामाजिक मूल्यों के गिरते ग्राफ ने आपराधिक घटनाओं का ग्राफ बढ़ा दिया है। गौरतलब है कि सिर्फ सिरसा जिला में विगत एक माह में हत्या की नौ घटनाएं घटी हैं। ये वे मामले हैं जो पुलिस तक पहुंचे हैंए वास्तविक आंकड़ा इससे भी अधिक हो सकता है। इनमें से ल्यादातर हत्याएं घरेलू कलह के चलते हुई हैं। 2 जून को साहुवाला द्वितीय में एक विवाहिता दहेज की बलि चढ़ा दी गई। 8 जून को केलनियां में एक विवाहिता की हत्या हुई। इस मामले में भी दहेजलोभी ससुरालियों पर आरोप लगा। 12 जून को चरित्रा पर संदेह के चलते एमसी कॉलोनी में पति ने अपनी पत्नी की जान ले ली। 18 जून को रैस्ट हाउस के निकट स्थित सरकारी क्वार्टर में युवती की हत्या दहेज न लाने के कारण की गई। 20 जून को रानियां के बाजीगर थेड़ में दादी ने सात माह की बच्ची को तंदूर में जलाकर मार डाला। 22 जून को रेलवे कॉलोनी में युवक का शव मिला। युवक की चाकुओं से गोदकर हत्या की गई थी। अभी तक शव की शिनाख्त तक नहीं हो पाई है। 23 जून को डबवाली में ससुराल में गए व्यक्ति की हत्या हुई। 24 जून को मीरपुर में पत्नी ने पति की हत्या  कर दी। और कल रात फिर रानियां चुंगी पर अधेड़ ने अपनी पत्नी का गला घोंट मौत के घाट उतार दिया। यह सिर्फ सिरसा का ब्यौरा हैए यदि विस्तृत स्तर पर पहुंचा जाए तो आंकड़े चौंकाने वाले होंगे।
    हत्या के ये आंकड़े सीधे तौर पर हमारे गिरते सामाजिक मूल्यों की ओर इंगित करते हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि लोगों में हत्या जैसी संगीन वारदातों को इतनी आसानी से अंजाम देने की हिम्मत कहां से आ रही हैघ् दहेज के लिए यूं ही विवाहिता को ससुरालजनों द्वारा जला दिया जाता है। चरित्रा का संदेह होने पर पति पत्नी की जान ले लेता है। प्रेम विवाह की खिलाफत करने वाले ऑनर किलिंग की घटनाओं को बेखौफ अंजाम दे रहे हैं। लड़के की चाहत में भ्रूण हत्याएं भी जमकर हो रही हैं। अधिकतर मामलों में लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है। यहां देश की सुरक्षा व्यवस्था को दोष दिया जाए या कानून व्यवस्था कोघ्
    असल में आपराधिक घटनाओं के बढ़ते ग्राफ के लिए दोनों ही समान रूप से जिम्मेदार हैं। पहली बात तो अपराधियों को पुलिस न्यायालय की चौखट तक पहुंचने ही नहीं देती। और यदि पहुंच भी जाएए तो ऊपरी स्तर पर न्यायालय की कार्रवाई में आरोपियों की जिंदगी गुज़र जाती है। ‘मार दो! क्या हैए ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद होगी। काट लेंगे। फांसी की सजा तो मौत तक राष्ट्रपति की मुहर का इंतज़ार करती रहती है।’ ऐसे जुमले अब हरेक की ज़ुबान पर आम हो चले हैं।
    सजा से अब समाज डरता नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि लोगों के पास अब पैसा है। और यह पैसा अब बहुत हद तक ‘मनमाफिक सजा’ पाने का जरिया भी बनता जा रहा है। आरोपी वीआईपी हो तो सजा के बाद भी जमानत पर रह सकता है। सलमान खानए संजय दत्त जैसे लोग ही तो युवाओं के ष्प्रेरणा स्रोतष् हैं! वे भी तो सजा पाने के बाद भी जमानत पर मस्त जिंदगी जी रहे हैं। तो फिर अपन को डर काहे का। ‘डरने का नहींए कूल रहने का’ की नीति पर चलते हुए लोग देश की कानून व्यवस्था को अंगूठा दिखाते नज़र आ रहे हैं। आज हर कोई अपने आप में ‘पहुंच’ वाला है।
    हमारे देश में सबसे बड़ी विडंम्बना है कि यहां के लोग मॉडर्न हो गए हैंए लेकिन व्यवस्था वही है। देश का कानून जैसा आज़ादी के बाद ड्राफ्ट हुआए उसी ढर्रे पर चला आ रहा है। क्राइम का तरीका बदल गयाए लेकिन सजा का नहीं। इसी से लोगों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। वक्त रहते यदि नहीं संभला गया तो वह दिन दूर नहीं जब छोटे.छोटे कस्बों में भी हर दिन हत्या आम हो जाएगी।  .अरिदमन

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