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Sunday 31 July 2011

शहादत को न भूले नई पीढ़ी : सांसद



समारोह के दौरान देशभक्ति गीत की प्रस्तुति देतीं छात्राएं



सिरसा। सांसद अशोक तंवर ने कहा कि हमारा देश अनेक शहीदों की शहादत व स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत आजाद हुआ। उनके कारण ही हमें आजाद फिज़ा में में सांस लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन दुर्भाग्य से आज हमारे देश में कुछ ऐसी ताकतों ने सिर उठा लिया है जो देश को तोडऩे की कोशिश कर रही हैं। हमें ऐसे लोगों को उनके मंसूबों में कामयाब नहीं होने देना है। डा. तंवर आज अनाज मंडी में  हरियाणा कम्बोज सभा द्वारा शहीद उधम सिंह के 71वां शहीदी दिवस एवं राज्य स्तरीय महासम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हरियाणा कम्बोज सभा के प्रदेशाध्यक्ष सेठ गोपी चन्द ने की। डेरा बाबा भूमणशाह संघरसाधां के गद्दीनशीन महन्त बाबा ब्रह्मदास ने विशेष रूप से शिरकत की। सांसद तंवर सहित अन्य अतिथियों ने सर्वप्रथम शहीद उधम सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए सांसद ने कहा कि भारत की स्वंतत्रता में जिन महान योद्धाओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया उनमें अमर शहीद उधम सिंह का नाम आदर व श्रद्धा से लिया जाता है। शहीद राष्ट्र की धरोहर होते हैं क्योंकि यह एक समाज के ही नहीं, अपितु सभी के होते हैं। हमें सदैव शहीदों का मान-सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी शहीदों को भूलती जा रही है। इसलिए हमें शहीदों के जन्मदिवस व बलिदान दिवस पर बड़े आयोजन कर लोगों को जागरुक करना चाहिए। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे शहीदों के दिखाए हुए मार्ग पर चलें ताकि एक स्वच्छ राष्ट्र का निर्माण हो सके।

-------------शहीद-ए-आज़म उधम सिंह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए अपना जीवन देश के लिए कुर्बान कर दिया। लंदन में जब उन्होंने माइकल ओ. डायर को गोली से उड़ाया तो पूरी दुनिया में इस भारतीय वीर की गाथा फैल गई।
26 दिंसबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे उधम सिंह ने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे उन्होंने 21 साल बाद खुद अंग्रजों के घर जाकर पूरा किया। अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से कई देशों से होते हुए उधम सिंह 1934 में लंदन पहुंचे। इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओ. डायर लंदन के काक्सटन हॉल में एक सभा में शमिल होने के लिए गया। उधम सिंह कम्बोज ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने माइकल ओ. डायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं। ओ. डायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। इस मामले में 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते-हंसते स्वीकार किया। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए।

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